हिंदुत्व एक रचनात्मक और सकारात्मक विचार      Publish Date : 24/03/2025

       हिंदुत्व एक रचनात्मक और सकारात्मक विचार

                                                                                                                          प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर

ऐसे बहुत से लोग हैं जो स्वयं को हिंदू तो कहते हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई विश्वास नहीं होता है। एक बार कुछ स्वयंसेवकों ने, स्वयं को एक हिंदू नेता कहने वाले व्यक्ति से गोहत्या के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान के लिए संपर्क किया। नेता ने कहा, “बेकार मवेशियों के वध को रोकने का क्या मतलब है? सभी मवेशी एक जैसे हैं, लेकिन मैं हस्ताक्षर करूंगा, क्योंकि मुसलमान गायों को मारते हैं।” इस जवाब से पता चलता है कि उस नेता में गाय के प्रति कोई श्रद्धा नहीं है, बल्कि इसकी रक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि मुसलमान इसे मारने पर जोर देते हैं। यह एक नकारात्मक, प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण है जिसमें हिंदुत्व परिलक्षित नहीं होता है।

अपने इतिहास में ऐसे लोग भी रहे हैं जो हिंदू शब्द से लाभ प्राप्त करने के लिए इसका भावनात्मकता का उपयोग करते हुए विषयों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते रहे हैं, जबकि हिंदू विचार बहुत सरल है। इसे समझने के लिए केवल दो बातें ही पर्याप्त है पहली सकारात्मकता और दूसरी सभी का कल्याण। हम स्वयं अनुभव करते हैं कि जब भी हम सकारात्मक विचारों के साथ कुछ सोचने या करने का प्रयास करते हैं तो जिस दिशा में हम बढ़ जाते हैं वह हिंदू विचार की ही दिशा होती है।

                                                 

इस संसार में हिंदू की तुलना मुस्लमान या ईसाई किसी से नहीं हो सकती, इसलिए हमारी कोई भी प्रतिक्रिया उनके विरोध के लिए नहीं हो सकती है। एक बार श्री गुरु जी से एक पत्रकार ने पूछा कि “क्या आप मुसलमानों की विभिन्न गतिविधियों का विरोध करने के लिए हिंदुओं को एकजुट कर रहे हैं?” उन्होंने कहा, “अगर मोहम्मद का जन्म नहीं होता और इस्लाम का अस्तित्व नहीं होता, तो भी हम हिंदुओं को एकजुट करना जारी रखते, यदि वे आज की तरह असंगठित और विस्मृति ग्रस्त होते।”

हिंदू एकीकरण का एकमात्र ठोस आधार अपने हिंदू राष्ट्र, हिंदू धर्म, हिंदू दर्शन के प्रति गर्वपूर्ण जागरूकता और इसे दुनिया के लिए एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में स्थापित करने की इच्छा है। एक रचनात्मक आस्था का सही अर्थ भी यही है।

अगर हम सिर्फ़ “राजनीतिक हिंदू” या “प्रतिक्रियावादी हिंदू” के तौर पर नहीं जीना चाहते, तो हमें सचेत रूप से “असली हिंदू” बनना होगा। यह हमारे जीवन के हर क्षेत्र में झलकना चाहिए। केवल साहित्य और मीडिया में हिंदुत्व को बढ़ावा देना बेकार होगा, यदि मनुष्य के जीवन में यह आचरण नहीं आएगा ।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।