औषधीय पौधों का महत्व और उनके उपयोग      Publish Date : 19/03/2025

             औषधीय पौधों का महत्व और उनके उपयोग

प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

मानव अपने रोगों से बचाव और उनके उपचार के लिए प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के पौधों का उपयोग करता आ रहा है। औषधीय रूप में पौधों की जड़ों, तने, पत्तियाँ, फूल, फल, बीज एवं छाल आदि का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। पौधों में उपलब्ध यह औषधीय गुण उनमें विद्यमान कुछ रासायनिक अवयवों के चलते होता है, जिनकी मानव के शरीर पर कुछ विशिष्ट क्रियाएं होती हैं। मुख्य औषधीय पौधों में एरगोट, एकोनाइट, मुलेठी, जलाप, हींग, मदार, सिया, लहसुन, अदरक, हल्दी, चंदन, बेलाडोना, तुलसी, नीम, अफीम और क्वीनाइन आदि का नाम लिया जा सकता है।

वर्तमान समय में आयुर्वेदिक एवं सिद्व दवाओं के बनाने में औषधीय पौधों का उपयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पौधे हानिरहित होते हैं जिन्हें घर पर भी आसानी से उगाया जा सकता है। ऐसे ही कुछ औषधीय पौधों का विवरण हमारे आज के इस लेख दिया जा रहा है, अतः पाठकों से अनुरोध है कि वह हमारे इस लेख को पूरा पढ़ें और इसका लाभ उठाएं-

औषधीय पौधा नीमः औषधीय रूप से देखा जाए तो इस मामले में नीम का वृक्ष अहुत महत्वपूर्ण है। नीम सम्पूर्ण भारत में प्रत्येक स्थान पर पाया जाने वाला पौधा है। नीम के वृक्ष के लगभग समस्त भाग- पत्तियाँ, पुष्प, फल और छाल आदि सभी औषधीय काम में आते हैं। नीम की पत्तियाँ पाचक, वातहर, कफनाशक एवं कीटाणुनाशक होती हैं। इसकी पत्तियों का अर्क त्वचा रोग और पीलिया रोग के उपचार हेतु प्रयोग कया जाता है। नीम का उपयोग कृमिनाशक के रूप में भी किया जाता है। नीम की टहनियों का उपयोग दातून के रूप में भारत में प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है।

बेलः बेल टेसी कुल का पौधा है जो पूरे संसार में पाया जाता है। इसका डायरिया, पेट की खराबी और कब्ज के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। बेल के फलों से एक ताजगी एवं स्फूर्तिदायक पेय भी बनाया जाता है।

आंवलाः आंवला का वानस्पातिक नाम ‘एम्बालिका ऑफिसिनेलिस’ है। आवले के फलों में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आंवले के फल शीतलता प्रदान करेन वाले, विरेचक और मूत्रवर्धक होते हैं। हरड़, बहेड़ा और आंवले का त्रिफला चूर्ण पेट के विकारों एवं आंखों की रोशनी को ठीक करता है। औषधीय गुणों से बना बालों का तेल और मुरब्बा आदि भी बनाए जाते हैं।

तुलसीः हमारे देश में तुलसी को एक पवित्र पौधें के रूप में जाना जाता है इसके साथ ही इसके औषधीय गुणों के चलते इसे जड़ी-बूटियों में भी एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। तुलसी की रामा तुलसी, वन तुलसी, कृष्णा तुलसी और कर्पूर तुलसी नामक चार किस्में होती हैं। कर्पूर तुलसी के तेल का उपयोग कान के इंफेक्शन के लिए किया जाता है। तुलसी के पौधे में बहुत प्रभावकारी कीटाणुनाशक, फफूंदनशक, जीवाणुरोधी और एंटीबायोटिक गुण उपलब्ध होते हैं जो बुखार, सर्दी और श्वसन सम्बन्धित परेशानियों को दूर करने में सक्षम होते हैं।

रामा तुलसी के पत्ते तीव्र स्वसन सिंड्रोम के लिए अति प्रभावशाली काम करते हैं। इसके पत्तों का रस सर्दी, बुखार, खांसी आदि समस्याओं में राहत प्रदान करता है। मलेरिया बुखार को ठीक करने में तुलसी का प्रयोग करना अहुत लाभकारी पाया गया है। यह अपच, सिरदर्द, हिस्टीरिया, अनिंद्रा और हैजा आदि बीमारियों को ठीक करने में बहुत अधिक लाभकारी सिद्व होता है।

पुदीनाः यह प्राकृतिक रूप से मैंगनीज, विटामिन ए और सी से भरपूर होता है। पुदीने की पत्तियों को उपयसोग मांसपेशियों को आराम देने के लिए किया जाता है। पुदीने के उपयोग से पेट का फूलना, पेट का खराब होना, बुखार, स्पाष्टिक कोलोन और आंत्र सिंड्रोम आदि को ठीक किया जा सकता है। पुदीना बैक्टरिया की बढ़त को भी रेकता है।

लेमन ग्रासः लेमन ग्रास एक ऐसा औषधीय पौधा है जिसे आसानी से घर पर उगाया जा सकता है। स पौधे के बहुत से चिकित्सीय लाभ और इसके अलावा भी अनेक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। यह चाय, सलाद, सूप और नींबू आदि के साथ ही लगभग समस्त व्यंजनों के साथ काफी स्वदिष्ट लगता है।

ऐलोवेराः यह एक अद्भुत पौधा है जो कहीं भी बड़ी आसानी से उग आता है। इस पौधें का बाहरी उपयोग करने के साथ ही आंतरिक उपयोग भी किया जा सकता है। यह एक अच्छा हाइड्रेटिंग एजेंट होता है। यह एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है और साथ ही यह एक प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर होता है। यह एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर एक प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर होता है जो शरीर को मुक्त कणों से निपटने में सहायता प्रदान करता है।

यह कटे, घाव तथा जलने से होने वाले संक्रमण के खतरे को भी कम करने की क्षमता रखता है। यह शरीर की सूजन को कम करने और बालों तथा त्वचा के लिए भी एक वरदान है। इसका जूस पीने से पाचन की समस्या, भूख न लगना, पुरानी कब्ज और अल्सरेटिव कोलाइटिस का एक प्राकृतिक उपचार है।

ब्राह्मी: मस्तिष्कीय विकास और स्मृति को ठीक करने के लिए ब्राह्मी एक उत्तम पौधा है। यह छोटा सा औषधीय पौधा त्वचा की चोटों और कोशिका की कोमलता को कम करता है। खुले घावों में इसकी पत्तियों को पीस का लेप लगाया जाता है। ब्राह्मी मस्तिक और तंत्रिका तंत्र को पुनर्जीवन प्रदान कर ध्यान की अवधि और एकाग्रता में वृद्वि करता है।

हल्दीः नीम की तरह ही हल्दी भी अपने औषधीय गुणों के लिए प्राचीन काल से ही जानी जाती है। भारत में पैदा होने वाली हल्दी में एंटी कैंसर गुण उपलब्ध होते है और यह डीएनए के म्यूटेशन को बाधित करने का काम भी करती है। एंटीइंफ्लेमेंटरी गुण होने के चलते इसका प्रयोग एक सप्लीमेंट के रूप में भी किया जाता है।

गठिया के रोगी के लिए तो यह रामबाण औषधी है। यह विभिनन प्रकार त्वचा रोगों और जॉइंट अर्थराइटिय को भी ठीक करने में सक्षम है।

अश्वगंधाः अश्वगंधा, भारतीय चिकित्सा ग्रन्थ आयुर्वेद की एक बहुत प्राचीन औष्धि है। इसका प्रयोग करने से तनाव के स्तर में कमी और तंत्रिका तंत्र की सुरक्षा के लिए बहुधा किया जाता है। यह प्राचीन जड़ी-बूटी व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को बढाने और घाव को ठीक करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। यह एक बहुत अच्छा आयुर्वेदिक हार्ट टॉनिक भी है। यह दृष्टि में भी सुधार करता है इसके साथ ही यह आसानी से कोलेस्ट्रॉल को कम करने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के काम आती है।

शतावरीः शतावरी, मुख्य रूप से महिलाओं की औषधि के रूप में जानी जाती है। यह महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को सुचारू करने के लिए एक उत्कृष्ट औषधि के रूप में विख्यात है। प्राचीन काल से ही इंफर्टिलिटी के रोगों में शतवार का उपयोग किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त, यदि कोई महिला अपने नवजात शिशु का पेट अपने दूध से नही भर पाजी है तो शतवार की जड़ का पाउडर बनाकर एक छोटा चम्मच सबह और शाम को गर्म दूध के साथ सेवन करने पर यह समस्या समाप्त हों जाती है। महिलाओं में हॉर्मान बदलाव और ल्यूकोरिया के जैसे रोगों में भी महिलाओं को लाभ प्रदान करती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।