
सच्चे सुख के लिए आत्म-ज्ञान का महत्व Publish Date : 09/03/2025
सच्चे सुख के लिए आत्म-ज्ञान का महत्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सुख को ढूंढते समय अक्सर व्यक्ति यह सोचता है कि मृत्यु के बाद जीवन का कोई प्रमाण नहीं है। अतः सुख मृत्यु के बाद मिलेगा इसकी भी कोई संभावना नहीं है। इसलिए हम केवल इस प्रकार के सुख की धारणा पर ही निर्भर नहीं रह सकते और इस सांसारिक जीवन में होने वाले दुखों से बच नहीं सकते। क्योंकि अनुभव यह है कि सांसारिक सुख अपरंपार दुःख देने वाले हैं। ऐसी आस्थाएँ वास्तविक जीवन में दुखों से मुक्ति पाने में अपर्याप्त सिद्ध होती हैं और परिणाम स्वरूप आस्था की नींव हिल जाती है और मनुष्य नास्तिकता और भौतिकवाद की ओर मुड़ जाता है। हिंदू जीवन शैली ने समाज के सदस्य के रूप में व्यक्ति के जीवन में सुख की अवधारणा पर गहन विचार किया है।
प्रारंभिक बात तो यह है कि हमें सुख की वास्तविक प्रकृति को समझना होगा। सामान्य अनुभव से पता चलता है कि सुख व्यक्ति परक होता है अर्थात अलग अलग व्यक्ति के लिए इसकी परिभाषाएं भी अलग अलग ही है। संपूर्ण ब्रह्मांड प्रसन्नता, आनंद और शाश्वत सत्य की अभिव्यक्ति है, हमारे पूर्वजों ने जीवन और ब्रह्मांड के दो बिंदुओं के साथ ईश्वर नाम की शक्ति का तीसरा आयाम जोड़ा जो सत्य, आध्यात्मिक और आनंदमय है अर्थात सच्चिदानंद है।
इस ब्रह्मांड के केंद्र में ब्रह्म नामक अद्वितीय, स्वतंत्र सत्य का महान सिद्धांत विद्यमान है। उसी ब्रह्म का ज्ञान शाश्वत सुख का स्रोत है। बहुत से दार्शनिक इस बात पर चर्चा करते हैं कि ईश्वर के माध्यम से ब्रह्म को समझकर मनुष्य किस प्रकार सुख प्राप्त कर सकता है।
इस प्रकार कर्म, भक्ति और ज्ञान के तीन मार्ग बताए गए, यह मत प्रतिपादित किया गया है कि ब्रह्म के बारे में ज्ञान प्राप्त किए बिना परम आनंद प्राप्त करना संभव नहीं है। पूर्ण ज्ञान केवल विषय में विलीन होने के बाद ही प्राप्त होता है और वह विषय ही ब्रह्म है। पूर्ण ज्ञान हो या सच्चा सुख केवल ब्रह्म में विलीन होने पर ही प्राप्त होता है क्योंकि वास्तव में, मनुष्य स्वयं भी सर्वव्यापी ब्रह्म की ही एक अभिव्यक्ति है।
अंतर यह है कि जीवन सीमित है और ब्रह्म अनंत है और उस ब्रह्म में स्वयं को विलीन करने की इच्छा रखने वाले के पास कर्म, भक्ति और ज्ञान के रूप में तीनों मार्ग सदैव प्रतीक्षा करते रहते हैं, लेकिन मनुष्य इन मार्गों को छोड़ कर कहीं और ही भटकता रहता है। आज के युग में भी इन तीनों मार्गों में से कर्म का मार्ग अत्यंत ही प्रासंगिक प्रतीत होता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।