गेंहूँ में खरपतवार नियंत्रण के उपाय      Publish Date : 02/11/2024

                         गेंहूँ में खरपतवार नियंत्रण के उपाय

                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

धान-गेंहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में गुल्ली-डंडा बहुत बड़ी समस्या, इस सम्स्या के नियंत्रण के लिए गेंहूँ की बुवाई करते समय किसानों को अपने खेत में खरपतवारनाशी दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।

                                                                       

गेंहूँ की अगेती बुवाई 25 अक्टूबर से शुरू हो जाती है। गेंहूँ में खरपतवार की समस्या से बचाव के लिए, गेंहूँ की बुवाई करने के समय या इसके कुछ दिन बाद खरपतवारनाशी दवाओं का छिड़काव किया जा सकता है, ऐसा करने के बाद खरपतवार पर नियंत्रण रहता है, जिससे किसान को अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।

धान-गेंहूँ फसल चक्र वाले लगभग सभी क्षेत्रों में गुल्ली-डंडा (मंडूसी) की एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है, ज्यादातर जगह जंगली जई, बथुआ, मंडूसी, गजरी और कटीली पालक आदि खरपतवार पाए जाते हैं।

गेंहूँ की फसल में खरपतवार नियंत्रण न किया जाए तो गेंहूँ की पैदावार में 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर खरपतवार का नियंत्रण समय रहते ही पा सकते हैं।

25 अक्टूबर से पांच नंवबर तक जो भी किसान गेंहूँ की बुवाई करते हैं, इसमें खरपतवार कम होता है, इसलिए किसान गेंहूँ की अगेती बुवाई पर अपना ध्यान केन्द्रित करें।

जीरो टिलेज मशीन से करें गेंहूँ की बुवाई

                                                              

जीरो टिलेज मशीन से गेंहूँ की बुआई करने पर 1500 रुपए प्रति एकड़ की बचत होगी। गेंहूँ की उत्पादकता बढ़ाने के लिए इस तकनीक को खेती के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।

यदि किसान भाई जीरो टिलेज तकनीक से गेंहूँ की बुआई करते है तो उसके उनको दो लाभ मिलते हैं, पहला लाभ खेत की जुताई के दौरान किसान को कल्टीवेटर नहीं चलाना पड़ेगा, दूसरा लाभ इस तकनीक से गेंहूँ की बुवाई करने पर बीज की मात्रा कम लगती है और इससे समय के साथ-साथ और आने वाले व्यय की भी बचत होती है।

खेत को बगैर जोते बिना बुआई का काम जीरो टिलेज सीड ड्रिल के माध्यम से आसानी से की जा सकती है। इस तकनीक से बुवाई करते समय पिछली फसल की कटाई के बाद फसल के अवशेषों या फानों को जीरो टिलेज मशीन द्वारा खेत को तैयार किए बिना ही अगली फसल की बुवाई कर दी जाती है, इसलिए इसे जीरो टिलेज तकनीक या सीधी बुवाई करने की तकनीक कहते है।

इस विधि से बुवाई करने से समय की बचत होती है। धान कटने के तुरंत बाद गेंहूँ की बुवाई करने में आसानी रहती है और इसके साथ ही पौधे से पौधे की दूरी उचित रहने से उत्पादन बढ़ता है। जीरो टिलेज में बोई गई गेंहूँ की फसल में पहली सिंचाई 15 से 20 दिन बाद ही कर देनी चाहिए।

खेत में नमी अधिक मात्रा में रहने पर पहली सिंचाई सामान्य अनुशंसा के आधार पर ही की जानी चाहिए। जीरो टिलेज मशीन के माध्यम से गेंहूँ की बुवाई करने के लिए खेत में उपलब्ध नमी का विशेष ध्यान भी रखा जाना आवश्यक होता है।

जब खेत में चलने पर पैरों के दबने के निशान बने व ट्रैक्टर भी चलाया जा सके उसके बाद ही जीरो टिलेज मशीन से गेंहूँ की बुवाई कर देनी चाहिए, जीरो टिलेज से बुवाई करने से एक पानी की भी बचत होती है।

पहली सिंचाई से पहले ही करें दवाओं का छिड़काव

                                                            

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि किसान भाई गेंहूँ की बुवाई के 3 दिन बाद पाईरोक्सा सल्फोन 60 ग्राम का प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी मिलाकर से छिड़काव करें। ऐसा करने से खेत में होने वाले मंसी, जंगली जेई व लोमड़ घास आदि पर नियंत्रण हो जाता है।

ऐसे किसान भाई, जो गेंहूँ की बुवाई करते समय स्प्रे नहीं कर पाए, वह पहले पानी से पहले इस दवा का स्प्रे कर सकते हैं और जो पहले पानी देने के दौरान भी इस दवाई का स्प्रे नहीं कर पाए, वे फिर 15 दिन बाद क्लोडिनापॉप व मेट्रिब्यून का 60 जमा 210 मिश्रण का स्प्रे 120 से 150 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।