जाता हुआ मानसून फसलों के लिए बना खतरा      Publish Date : 19/09/2024

                 जाता हुआ मानसून फसलों के लिए बना खतरा

                                                                                                             प्रेाफेसर आर. एस. सेंगर एवं अरूण सिंह 

                                                                                                                                              

भारत की 64 प्रतिशत जनसंख्या मूल रूप से कृषि पर ही आश्रित है और हमारी कुल कृषि का 65 भाग मानसून पर निर्भर है। कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के चलते मानसून हमारी कृषि एवं अर्थव्यवस्था दोनों को ही एकसमान रूप से प्रभावित करता है। दरअसल, यह मानसून एक अक्ष है जिसके आसपास हमारी अर्थव्यवस्था घूमती है। अतः यह कहना कोई अश्यिोक्ति नही होगी कि मानसून भारतीय अर्थव्यवस्था को आकार देने में एक महत्ती भूमिका निभाता है।

बेमौसम बारिश के कारण

                                                               

बेमौसम बारिश के विभिन्न कारण होते हैं जैसे-

जलवायु के पैटर्न में व्यापक बदलावः- अप्रत्याशित मौसम के पैटर्न और वर्षा को ग्लोबल वार्मिंग, पश्चिमी विक्षोभ का कमजोर पड़ना और मजबूत उपोष्णकटिबन्धीय जेट धाराओं को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न यह समस्त कारक अनियमित वर्षा के उद्वव में योगदान करते हैं।

अल-नीनो घटनाएं:- अन-नीनो, एक जलवायु से सम्बन्धित घटना है जो उस समय घटित होती है, जिस समय प्रशांत महासागर से गर्म पानी पूर्व की ओर गति करता है। जलवायु सम्बन्धित इस घटना के चलते जहां कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनती है तो वहीं कुछ क्षेत्रों में बेमौसम बरसात की घटनाएं भी होती है।

                                                                      

                                                                     अरुण कुमार सिंह

ला-नीना घटनाः- अल-नीनो घटना के विपरीत ला-नीना घटना उस समय होती है जिस समय प्रशांत महासागर से ठंड़ा पानी पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर बढ़ता है। इस जलवायुवीय घटना के चलते कुछ क्षेत्रों में यदि अत्याधिक बरसात होती है तो कुछ अन्य क्षेत्रों में बेमौसमी बरसात भी होती है।

वायुमण्ड़ल की अस्थिरताः- वायुमंडल की अस्थिरता के कारण भी अप्रत्याशित वर्षा हो सकती है। वायुमंडल के दबाव में अचानक बदलाव आने से गैर-मानसून काल के दौरान होने वाली वर्षा को बढ़ावा मिल सकता है।

मानवीय कारकः- अत्याधिक शहरीकरण, प्रदूषण और वनों की अंधाधुंध कटाई के जैसे मानवीय कृत्य भी बेमौसमी बारिश में भरपूर योगदान करते हैं। चूँकि वनों की कटाई प्राकृतिक जल चक्र में बाधा उत्पन्न करती है, जबकि शहरीकरण और प्रदूषण भी सूक्ष्म जलवायु को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करते हैं। इसके फलस्वरूप बेमौसम बारिश होती है।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वापसी की आशा

                                                                       

19 से 25 सितम्बर के मध्य दक्षिण-पश्चिमी मानसून के वापस लौटने की आशाएं जताई जा रही हैं, आईएमडी के अनुसार, 19 से 25 सितम्बर की अवधि के दौरान उत्तर-पश्चिमी भारत के कुछ भागों से दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वापसी के लिए जिम्मेदार परिस्थितियां अनुकूल होने की सम्भावनाएं बन रही हैं।

बिना मौसम बारिश का फसलों पर प्रभावः-

                                                                         

असल में सामान्य से अधिक होने वाली बारिश अक्सर किसान के लिए संकट का कारण ही बनती रही है। यह बारिश गर्मी में बोई गयी अनेक फसलों जैसे धान, कपास, सोयाबीन, मक्का और दलहनी फसलों पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। सामान्य रूप से यह सभी फसलें सितम्बर के मध्य तक कटने लगती हैं और इन फसलों के खराब होने से खाद्य सामग्री की महंगाई बढ़ने की सम्भावना रहती है। हालांकि इस बारिश से मिट्टी में नमी की मात्रा अधिक उपलब्ध होने से ठंड़ के सीजन के दौरान बुआई की जाने वाली फसलों की बुआई करने में देरी हो सकती है, जिससे अगली फसलों के उत्पादन में कमी देखने को मिल सकती है।

फसलीय क्षतिः- अप्रत्याशित वर्षा के चलते फसलों को गम्भीर नुकसान हो सकता है। अत्याधिक नमी होने के कारण भूमि में जल भराव, जड़-सड़न आदि के चलते इनके उत्पादन में कमी आ सकती है।

रोपण और कटाई में विलम्बः- बेमौसमी वर्षा के चलते फसलों के रोपण एवं कटाई में विलम्ब हो सकता है, जिससे कृषि उत्पादन में कमी आने के साथ ही किसानों को वित्तीय संकट भी झेलना पड़ सकता है।

कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में गिरावटः- भूमि में अत्याधिक नमी होने के कारण फल एवं सब्जी जैसी फसलों के उत्पादों की गुणवत्ता भी कुप्रभावित हो सकती है। इस बेमौसमी बारिश के चलते आने वाले दिनों में सब्जी एवं फलों के भाव में काफी उछाल देखने को मिलेगा जिसके परिणामसवरूप किसान एवं उपभेक्ता दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा।

कीट एवं रोग की समस्याः- बेमौसमी वर्षा के कारण भूमि में लम्बे समय तक नमी बनी रहने के कारण अब फसलों पर कीट एवं रोणाुओं के पनपने के लिए परिस्थितियां बेहद अनुकूल हैं, जिसके कारण फसलों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

बेमौसम बारिश से कैसे करें बचावः- इसके सम्बन्ध में किसान भाई कुछ बातों को अपने ध्यान में रखकर अपनी फसलों को इस बेमौसमी बारिश के प्रकोप से बचाकर अपनी आय में भी बढ़ोत्तरी कर सकते हैं।

मौसम की पूर्व चेतावनीः- उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों को लागू करने से किसानों को इस होने वाली बेमौसमी वर्षा का पूर्वानुमान लगाने और इसके निवारणर्थ उपाय करने में सहायता मिल सकती है।

संचार चैनलः- एमएमएस अलर्ट, मोबाइल एप और सामुदायिक रेडियो आदि के माध्यम से मौसम की जानकारी प्रसारित करने से सुनिशिचत हो सकता है कि दूराज के क्षेत्रों के किसानों को भी महत्वपूर्ण अपडेट प्राप्त हो सके।

फसल विविधीकरणः- जलवायु के अनुकूल होने वाली फसलों की खेती को बढ़ाव देने से बिना मौसम बाशि से जुड़े जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है।

डचित फसल चक्र अपनाएं:- अपने क्षेत्र के मौसम के अनुसार उचित फसल चक्र को अपनाने से मृदा के स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार होगा जिससे कीट आदि का दबाव कम हो सकता है और साथ ही किसानों के लिए एक वैकल्पिक आय का स्रोत भी विकसित होगा।

अनुशंसित फसल प्रजातियां:- मौसम विभाग से आने वाले मौसम की सही जानकारी प्राप्त कर उसी के अनुसार सही प्रजाति या मौसम के अनुकूल प्रजातियों का चयन करना भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण होता है।

उचित जल-निकास की व्यवस्थाः- ग्रामीएा बुनियादी ढांचे और विशेष रूप से जल-निकास प्रणालियों को बेहतर बनाने के माध्यम से बेमौसम वर्षा के चलते अतिरिक्त जल का प्रबन्धन करने में मदद मिल सकती है।

कृषि बीमा योजनाएं अपनाएं:- फसलों का बीमा शुरू करर्ने आैर इसे बढ़ावा देने से भी बेमौसम बारिश के कारण होने वाले नुकसान की स्थिति में किसान को एक सुरक्षा कवच मिल जाता है। अतः किसान भईयों से अपील है कि वे अपनी फसल का बीमा अवश्य ही कराएं।

                                                               

सारांशः-

सामान्य से अधिक होने वाली यह बारिश हमारे किसानों के लिए एक संकट वाली स्थिति लेकर आई है। बिना मौसम की यह बारिश गर्मी में बोई गयी अनेक फसलों जैसे धान, कपास, सोयाबीन, मक्का और दलहनी फसलों पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। अतः हमारे समस्त किसान बन्धुओं से अपील की जाती है कि वह मौसम विभाग के पूर्वानुमानों के अनुसार ही अपनी खेती में फसलों की प्रजातियों और फसल चक्र अपनाकर ही फसलों की बुआई करें।  

                                                                              

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।