
मूल अपने स्थान को छोड़ते हमारे पेड़ Publish Date : 11/08/2024
मूल अपने स्थान को छोड़ते हमारे पेड़
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
क्या आप जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पेड़ों की कई प्रजातियों को उनके भौगोलिक वितरण के ठंडे और नम क्षेत्रों की ओर धकेल रहा है। एक शोध में सामने आया है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके साथ-साथ पेड़ों की कई प्रजातियां ज्यादा अनुकूल क्षेत्रों की ओर रुख कर सकती हैं। अब यह स्पष्ट होने लगा है कि बदलती जलवायु के साथ पेड़ों की कई प्रजातियां अपने मूल स्थान से दूर हटने लगी हैं। भारत के संदर्भ में देवदार और आम जैसे पेड़ों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। वृक्ष प्रजातियों का यह पलायन अपने आप में अनूठा है, जो स्पष्ट तौर पर पेड़-पौधों पर जलवायु परिवर्तन के कारण ही था।
विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्ययन यूरोप और उत्तरी अमेरिका से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यूरोप और अमेरिका
ऐसा लगने लगा है कि जड़ों से जुड़ाव का मुहावरा बदल देगी यह ग्लोबल वार्मिंग। ललित मौर्य के मुताबिक, अध्ययन स्पष्ट कर रहे हैं कि इसकी वजह से पेड़ छोड़ रहे हैं अपने पुश्तैनी इलाके और अपनी नई पीढ़ियों के भविष्य के लिए बढ़ रहे हैं ठंडी जगहों की ओर।.
पेड़ों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने देखा कि क्या पेड़ों के घनत्व में परिवर्तन प्रत्येक प्रजाति की विशिष्ट विशेषताओं से जुड़ा हो सकता है, जैसे कि वे शुष्क परिस्थितियों को कितनी अच्छी तरह सहन करती हैं या उनके विस्तार की क्षमता कितनी है।
अध्ययन से पता चला है कि उत्तरी गोलार्ध में पेड़ों की प्रजातियां ठंडे और नम क्षेत्रों में अधिक घनी हो रही हैं। यह पहले पुख्ता प्रमाण हैं जो दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन महाद्वीपीय स्तर पर समशीतोष्ण वनों में करीब- करीब सभी प्रजातियों के पेड़ों की संख्या में बदलाव की वजह बन रहा है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जूलेन एस्टिगरगा का कहना है, ‘‘अधिकांश प्रजातियों में एक हद तक अनुकूलन की अनूठी क्षमता होती है। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि उत्तर के क्षेत्रों में अपने घनत्व में इजाफा करके पेड़ों की यह प्रजातियां जलवायु में आते बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया कर रही हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, प्रबंधन और बहाली की योजना बनाने के लिए यह आवश्यक है।’’
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डाक्टर थामस पुध के शोधपरक दस्तावेज सर्किल्स ऑफ फ्रीडम वर्तमान में पेड़ों की जिन प्रजातियों की मदद ली जा रही है, यह भविष्य में इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं रह जाएंगी। उनका कहना है कि यदि इन बदलावों पर विचार नहीं किया जाता तो कार्बन डाइआक्साइड की कैप्चर और स्टोर करने के लिए जो वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, वो उतने प्रभावी नहीं रह जाएंगे।
दूर जा रहे देवदार
भारत में पेड़ों पर किए गए कई अध्ययनों में इस बात के प्रमाण सामने आए हैं कि जलवायु में आता बदलाव पेड़ों पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। बढ़ते तापमान के साथ पहाड़ों पर मौजूद पेड़ अब पहले से अधिक ऊंचाई की और पलायन कर रहे हैं,, मतलब कि पर्वतीय ट्री लाइन अब ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रही है। वहीं एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र में बढ़ते तापमान के साथ देवदार के पेड़ों में 38 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है।
हिंदुकुश हिमालय वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक मानसूनी क्षेत्र में उगने वाले हिमालयी देवदार में बढ़ते तापमान के साथ गिरावट आ जाएगी और ऐसा भविष्य में गर्म होती सर्दियों और बसंत में बदलती जलवायु के कारण होगा।
बेमौसम की बौर
भारत में बदलती जलवायु का दूसरा बड़ा असर आम के पेड़ों पर पड़ रहा है। जर्नल इकोलाजी एनवायरनमेंट एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते आम के पेड़ों में समय से पहले और बाद में बौरों का लगना प्रमुख प्रभाव है। ऐसा ही कुछ देखा गया था जब दिसंबर 2022 के तीसरे सप्ताह से ही तेलंगाना और ओडिशा में आम के पेड़ों में बौरों का आना शुरू हो गया था, जो इसके सामान्य समय से कम से कम एक महीना पहले है। विशेषज्ञों ने इसके लिए बेमौसम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्म के बढ़ते प्रभावों को दर्शाता है।
अल्काला और बर्मिंघम में पाए जाने वाली 73 प्रजातियों के 20 लाख से ज्यादा मुताबिक, यूरोप में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए होती सर्दियों को जिम्मेवार माना था।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।