
किसानों को लग सकता है बड़ा झटकाः यूरिया का चरणबद्ध तरीके से दाम बढ़ाने की तैयारी Publish Date : 03/10/2025
किसानों को लग सकता है बड़ा झटकाः यूरिया का चरणबद्ध तरीके से दाम बढ़ाने की तैयारी
चालू खरीफ सीजन में विभिन्न राज्यों में यूरिया की कमी देखी जा रही है। शुरुआती अच्छे मानसून के चलते किसानों ने यूरिया की अतिरिक्त खपत की। चीन के निर्यात प्रतिबंध और वैश्विक हालात से बढ़ी कीमतों के चलते संकट और अधिक गहरा गया है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने सुझाव दिया है कि यूरिया की कीमतों में धीरे-धीरे चरणबद्व तरीके से बढ़ोतरी की जाए जिससे कि खेतों में पोषक तत्वों (NPK) के असंतुलित उपयोग को कम किया जा सके। आयोग ने अपनी ताजा रबी विपणन सीजन 2026-27 पर जारी की गई रिपोर्ट में कहा कि सरकार की नीतियों से यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़े हैं, लेकिन अत्यधिक सब्सिडी के कारण किसानों के द्वारा यूरिया का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, जिससे मिट्टी की सेहत और फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
क्यों जरूरी है दामों में बढ़ोतरी?
आयोग के अनुसार, फिलहाल यूरिया किसानों को 242 रुपये प्रति 45 किलो बैग (नीम कोटिंग और टैक्स छोड़कर) की दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। यह अत्यधिक सब्सिडी वाला दाम है, जिसके चलते कुछ प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु) में खपत 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भी अधिक हो गई है। इसके कारण NPK अनुपात संतुलन बिगड़ गया है और मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की भारी कमी हो रही है।
CACP ने कहा कि यूरिया पर सब्सिडी बचत का उपयोग फॉस्फेट (P) और पोटाश (T+) खादों पर अधिक सब्सिडी देने में किया जाए, जिससे कि किसान संतुलित उर्वरक उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित हो सकें।
उत्पादन और आयात की स्थिति
भारत की कुल यूरिया मांग का करीब 30 प्रतिशत आयात पर निर्भर करता है। हालांकि वर्ष 2015-16 में 24.5 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में उत्पादन रिकॉर्ड 31.4 मिलियन टन तक पहुंचा है। जबकि वर्ष 2024-25 में यह थोड़ा घटकर 30.6 मिलियन टन रह गया था। इसका आयात भी वर्ष 2015-16 के 8.5 मिलियन टन से घटकर वर्ष 2024-25 में 5.6 मिलियन टन रह गया था। इस हिसाब से कुल खपत में आयात का हिस्सा 27.7 प्रतिशत से घटकर 14.6 प्रतिशत रह गया है।
CACP की अन्य सिफारिशें
- सूक्ष्म पोषक तत्वों और जैविक कार्बन की कमी को दूर करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है।
- किसानों को माइक्रो-न्यूट्रिएंट्स और बायो-फर्टिलाइज़र के उपयोग के लिए प्रेरित किया जाना अति आवश्यक है।
- मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं को मजबूत किया जाए, इसके लिए आधुनिक उपकरण लगाए जाएं और कर्मचारियों को रियल-टाइम परीक्षण के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
सरकार पहले ही कई कार्यक्रम चला रही है जैसे-
पीएम-प्रणाम (PM-PRANAM)– मिट्टी की सेहत और संतुलित पोषण पर केंद्रित।
गोबरधन (GOBARdhan)– के माध्यम से जैविक खाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
नैनो यूरिया और बायो-फर्टिलाइज़र- टिकाऊ खेती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम।