कार्यालय आयुक्त, गन्ना एवं चीनी, उत्तर प्रदेश, के द्वारा निर्गत एडवाइजरी      Publish Date : 01/07/2025

कार्यालय आयुक्त, गन्ना एवं चीनी, उत्तर प्रदेश, के द्वारा निर्गत एडवाइजरी

                                                    प्रेस-नोटः-

गन्ने के रोग एवं कीटों के नियंत्रण हेतु निर्गत की गई एडवाइजरी

गन्ने की फसल में समसामयिक लाल सड़न (रेड रॉट), कन्डुआ (स्मट), उकठा (विल्ट), जडबेधक, गुलाबी चिकटा (मिलीबग) आदि रोगों एवं कीटों के प्रभावी नियंत्रण हेतु एडवाइजरी जारी कर दी गयी है। 

लाल सडन रोग के रोकथाम के लिए किसान प्रभावित गन्ने की पौध को जड़ से निकालकर नष्ट कर देनी चाहिए तथा गड्ढे में 0.2 प्रतिशत थायोफेनेटमेथिल 70 डब्ल्यू.पी. अथवा एजॉक्सीस्ट्रोबिन 18.2 + डाई फेनोकोनाजोल 11.4 एस.सी. के घोल की ड्रेन्चिंग करें।

कन्डुआ (स्मट) रोग से बचाव हेतु गन्ने की बुवाई के समय ही गन्ने के टुकड़ों को प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. के 0.1 प्रतिशत घोल से 10 मिनट तक बीज को उपचरित कर बुवाई करें।

उकठा (विल्ट) रोग की रोकथाम करने के लिए मृदा में बोरेक्स 15 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना लाभदायक रहता है। बोरान और मैगनीज (40 PPM) के घोल का छिड़काव करने से प्रभावी नियंत्रण होता है।

जड़-बेधक के नियंत्रण करने के लिए ट्राइकोग्रामा काइलोनिस के 50,000 वयस्क प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिन के अंतराल पर जून माह के अन्तिम सप्ताह से सितम्बर माह तक अवमुक्त की जा सकती है।

गुलाबी चिकटा (मिलीबग) के प्रभावी नियंत्रण हेतु गन्ने की लीफशीथ को हटाने के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. की 200 मि.ली. अथवा डाइमेथेऐट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा को 625 लीटर अथवा डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.26 लीटर मात्रा को 625 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. की 1500 मि.ली. मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 1000 लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव करें।

प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त, प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया कि प्रदेश के विभिन्न परिक्षेत्रों गन्ने की फसल में समसामयिक लाल सड़न (रेड रॉट), कन्डुआ (स्मट), उकठा (विल्ट), जडबेधक, गुलाबी चिकटा (मिलीबग) आदि रोगों एवं कीटों से प्रभावी नियंत्रण हेतु एडवाइजरी जारी कर दी गयी है।

इस सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के द्वारा जारी सुझावों के अनुसार कुछ क्षेत्रों में गन्ना किस्म को. 0238 की पत्तियों पर लाल सड़न रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। लाल सड़न एक फफंूद जनित रोग है। इस रोग में गन्ने की पत्तियों के निचले भाग से ऊपर की ओर मध्य शिरा पर लाल रंग के धब्बे, रूद्राक्ष और मोतियों की माला के जैसे दिखाई देते हैं। जुलाई, अगस्त के महीने में रोग ग्रसित गन्ने की पत्तियां टूटना आरम्भ हो जाती हैं और धीरे-धीरे पूरा अगोला ही सूख जाता है।

प्रभावित गन्ने के तने को लम्बवत् काटने पर इसके अंदर का रंग लाल होने के साथ ही उस पर सफेद रंग के धब्बे और सूंघने पर सिरके अथवा अल्कोहल के जैसी गंध आती है। लाल सड़न रोग की रोकथाम के लिए किसान, प्रभावित गन्ने के पौधे को जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें तथा गड्ढे में 0.2 प्रतिशत थायोफेनेटमेथिल 70 डब्ल्यू.पी. अथवा एजॉक्सीस्ट्रोबिन 18.2 + डाई फेनोकोनाजोल 11.4 एस.सी. के घोल की ड्रेन्चिंग करें। इस रोग से प्रभावितत गन्ने में जून माह तक 0.1 प्रतिशत थायोफेनेटमेथिल 70 डब्ल्यू.पी. अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. का पर्णीय छिड़काव करे और अधिक वर्षा के होने पर रोगी खेत के पानी को दूसरे खेतों में जाने से राकें।

उन्होंने बताया कि कण्डुआ रोग भी गन्ने का एक फफूंद जनित रोग होता है। रोगी पौधों की पत्तियां छोटी, नुकीली तथा पंखे के आकार की हो जाती है और गन्ना पतला एवं लम्बा हो जाता है। इस रोग के उपचार के लिए किसानों गन्ने की बुवाई के समय ही गन्ने के टुकड़ों को प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. अथवा कार्बेन्डाजिम 25 ई.सी. के 0.1 प्रतिशत घोल में गन्ने के बीज को 10 मिनट तक डुबोकर उसका उपचार करना चाहिए। इसके साथ ही प्रोपिकोनोजोल 25 ई.सी. के 0.1 प्रतिशत घोल का 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।

गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने बताया कि उकठा (बिल्ट) बीज व मृदा व बीज के माध्यम से फैलने वाला एक फफूंद जनित रोग है। उकठा रोग के प्रारम्भिक एवं स्पष्ट लक्षण तथा जड़ बेधक कीट का आपतन अलग-अलग तथा दोनों का संयुक्त रूप से भी पाया जाता है।

यह रोग गर्मियों में कम आर्द्रता, मृदा में नमी का अभाव दिन का उच्च तापमान और सूखे जैसी स्थितियों में उकठा एवं जड़ बेधक कीट का आपतन अधिक होता है। उकठा रोग से बचाव हेतु गन्ने की बुवाई के समय संतुत मात्रा में सल्फर का उपयोग किया जाना उचित रहता है। हरे गन्ने की जड़ के पास ट्राइकोडर्मा 4 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से 40-80 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद या प्रेसमड के साथ खेत में उपलब्ध नमी की अवस्था में ही प्रयोग करने से लाभ होता है।

आयुक्त ने बताया कि जड़-बेधक कीट गन्ने के जड़ वाले भाग को हानि पहुँचाता है। इसकी सूंडी का रंग सफेद तथा उसकी पीठ पर कोई धारी नहीं होती है और इसके सिर का रंग गहरे भूरे रंग का होता है। गन्ने की फसल पर इस कीट का प्रकोप अप्रैल माह से अक्टूबर माह तक होता है। यह कीट गन्ने के नवजात पौधों को नुकसान पहुँचाता है।

इस कीट के जैविक नियंत्रण हेतु बवेरिया बैसियाना एवं मेटारराइजियम एनीसोपोली की 5.0 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्रति हेक्टेयर की दर से 1 या 2 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर पहली बारिश के बाद खेत में डालकर गुड़ाई करनी चाहिए।      

कार्यालय आयुक्त, गन्ना एवं चीनी, उत्तर प्रदेश, 17 न्यू बेरी रोड डालीबाग, लखनऊ। दूरभाषः 0522-2204295, 2205310, फैक्सः 0522-2204163 टोल-फ्री नम्बरः 1800-121-3203

Website:https://www.upcane.gov.in/

E-Mail:cpo.canedevelopment@gmail.com

Facebook:https:/www.facebook.com/upcane Twitter:https://www.twitter.com/canewebsite Youtube:/bit.ly/2KmgpI.8