
गेहूँ की किस्म HD 4728, 65 क्विंटल/हेक्टेयर तक की पैदावार दाना भी मोटा Publish Date : 25/09/2025
गेहूँ की किस्म HD 4728, 65 क्विंटल/हेक्टेयर तक की पैदावार दाना भी मोटा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
खरीफ मौसम की फसलों की बुवाई करने का समय अब बहुत करीब है। ऐसे में किसान भाई गेहूँ आदि फसलों की बुवाई की तैयारी करने में जुटे हैं। गेहूँ की फसल के सम्बन्ध में हमारे कृषि विशेषज्ञ और सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर आपका परिचय करा रहें हैं गेहूँ की एक अच्छी किस्म से जिसकी बुवाई कर किसान अपेक्षाकृत अधिक लाभ कमा सकते हैं। गेहूँ की बुवाई के समय यदि खेत में धान की फसल के ठूंठ खड़े हैं, तो पहले उन्हें सड़ा देना चाहिए, जिससे वे जैविक खाद में बदल जाएं, ऐसा करने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है।
रबी फसलों की बुवाई करने का समय अब शुरू हो चुका है और किसान गेहूं समेत अन्य फसलों की बुवाई करने की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में यदि आप भी गेहूं से अधिक उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको गेहूँ की उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। इसी कड़ी में कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी किस्म विकसित की है, जो कि किसानों को न केवल 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार देने में सक्षम है, साथ ही यह किस्म कीट और रोगों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को पूसा मालवी HD 4728 नाम दिया है।
खरीफ मौसम की फसलों की बुवाई करने का समय अब बहुत करीब है। ऐसे में किसान भाई गेहूँ आदि फसलों की बुवाई की तैयारी करने में जुटे हैं। गेहूँ की फसल के सम्बन्ध में हमारे कृषि विशेषज्ञ और सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर आपका परिचय करा रहें हैं गेहूँ की एक अच्छी किस्म से जिसकी बुवाई कर किसान अपेक्षाकृत अधिक लाभ कमा सकते हैं। गेहूँ की बुवाई के समय यदि खेत में धान की फसल के ठूंठ खड़े हैं, तो पहले उन्हें सड़ा देना चाहिए, जिससे वे जैविक खाद में बदल जाएं, ऐसा करने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है।
रबी फसलों की बुवाई करने का समय अब शुरू हो चुका है और किसान गेहूं समेत अन्य फसलों की बुवाई करने की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में यदि आप भी गेहूं से अधिक उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको गेहूँ की उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। इसी कड़ी में कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी किस्म विकसित की है, जो कि किसानों को न केवल 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार देने में सक्षम है, साथ ही यह किस्म कीट और रोगों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को नाम दिया है।
पूसा मालवी HD 4728 किस्म को वर्ष 2016 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति ने अधिसूचित किया था। यह किस्म विशेष रूप से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा व उदयपुर डिवीजन और उत्तर प्रदेश के जिला झांसी डिवीजन के लिए उपयुक्त पाई गई है।
गेहूँ की इस वेरायटी की विशेषताएं
- दाने मोटे और चमकदार, बाजार में मांग वाली तमाम क्वालिटी।
- इस किस्म की फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
- यह किस्म विशेष रूप से पत्ती और तना झुलसा रोगों के प्रति प्रतिरोधी है।
- यह किस्म, सिंचित खेतों में समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है।
- इस किस्म की औसत पैदावार 54.2 क्विंटल और अधिकतम 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई गई है।
- यह किस्म सूजी और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए आदर्श किस्म साबित होगी।
गेहूं की कुछ अन्य बेहतर किस्में:-
प्रयोजन |
किस्में |
संभावित पैदावार |
सामान्य सिंचित क्षेत्र |
पूसा जागृति HI 1653, पूसा अदिति HI 1654, पूसा हर्ष HI 1655 |
50-55 क्विंटल/हेक्टेयर |
असिंचित क्षेत्र |
HD 3293, HI 1620, DBW 296, WH 533 |
25-40 क्विंटल/हेक्टेयर |
क्षारीय/लवणीय मिट्टी |
KRL 213, HS 420, NW 1067 |
30-45 क्विंटल/हेक्टेयर |
कैसे करें पूसा मालवी HD 4728की बुवाई?
तापमानः 20-25°C तक सबसे उपयुक्त माना गया है।
भूमिः इस किस्म की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है।
खेत की जुताईः खेत पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से चाहिए। इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या डिस्क हैरो से जुताई करनी चाहिए।
- पहली जुताई के समय 20-25 किग्रा यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए।
बीज दर
- कतार में बुवाईः 100-125 किग्रा/हेक्टेयर की दर से बीज की खपत होती है।
- छिड़काव विधि से बुवाई करने परः 125-150 किग्रा/हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।
बीज शोधन
- बाविस्टिन या कार्बेन्डाजिम से 2 ग्राम/किग्रा की दर से बीज उपचार कर बीज की बुवाई करनी चाहिए।
- बुवाई उपकरणः देसी हल या ट्रैक्टर चालित बीज ड्रिल के द्वारा बीज की बुवाई करना उत्तम रहता है।
- बुवाई के समय यदि खेत में धान की फसल के ठूंठ हैं, तो पहले उन्हें सड़ा देना चाहिए जिससे वे जैविक खाद में बदल जाएं। इससे भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।