जई की नई उन्नत किस्में, कम लागत में अधिक उत्पादन      Publish Date : 27/06/2025

जई की नई उन्नत किस्में, कम लागत में अधिक उत्पादन

                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 डी. के. सिंह  

3 New Varieties of Oats: देश के किसानों और पशुपालकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के चारा अनुभाग की ओर से जई (ओट्स) की 3 नई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो न केवल अधिक चारा दे सकती हैं, बल्कि बीज उत्पादन के लिहाज से भी काफी बेहतर मानी जा रही हैं। ये किस्में देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में उगाई जा सकेंगी, जिससे पशुओं के लिए हर मौसम में भरपूर हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।

जई की ये तीनों नई किस्में देश के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई हैं, ताकि हर मौसम में, हर क्षेत्र में पशुओं को गुणवत्तायुक्त चारा प्राप्त हो सके। इससे न केवल पशुपालन की लागत कम होगी, बल्कि दूध उत्पादन और पशु स्वास्थ्य में भी बड़ा सुधार देखने को मिलेगा। कम लागत में अधिक उत्पादन, यही इन किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता है। किसान जई की इन किस्मों को उगाकर अपने पशुओं के लिए बेहतर चारे का प्रबन्ध कर सकते हैं, हमारे विशेषज्ञ बता रहे हैं, इन किस्मों के बारे में विस्तार से-

जई की नई उन्नत किस्में

                                                            

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के चारा अनुभाग की ओर से जई (ओट्स) की जो 3 नई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, उनमें HFO 917, HFO 1014 और HFO 915 शामिल हैं। इनमें से दो किस्में बीज और चारा दोनों के लिए उपयुक्त बताई जा रही हैं, जबकि एक किस्म एक से अधिक बार कटाई की क्षमता रखने वाली किस्म है। इन किस्मों को भारत सरकार द्वारा अनुमोदित भी कर दिया गया है। ऐसे में ये किस्में किसानों व पशुपालकों के लिए काफी लाभकारी साबित हो सकती हैं।

चारे के संकट को दूर करेंगी जई की ये किस्में

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज के अनुसार वर्तमान में देश में 11.24 प्रतिशत हरे चारे और 23.4 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है, जिसके कारण पशुओं की उत्पादकता प्रभावित हो रही है। ऐसे में अधिक उत्पादन देने वाली चारा फसलों की नई किस्मों का विकास बेहद आवश्यक हो गया है। जई की इन नई किस्मों के आने से पशुपालकों को न केवल चारे की भरपूर उपलब्धता होगी, बल्कि इससे पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता बढेंगी और उनके स्वास्थ्य में भी सुधार होगा। उन्होंने बताया कि इन किस्मों को भारत सरकार के राजपत्र (गजट) में केंद्रीय बीज समिति की सिफारिश पर नोटिफाई किया गया है ताकि समय पर इनकी बुआई की जा सके।

HFO 917 और HFO 1014 हैं, दोहरे उपयोग वाली किस्में

जई की HFO 917 और HFO 1014 किस्मों को चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों की टीम ने विकसित किया है, वैज्ञानिकों की इस टीम में  डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. डी. एस. फोगाट, डॉ. सत्यवान आर्य, डॉ. रवीश पंचटा, डॉ. एस.के. पाहुजा, डॉ. सतपाल और डॉ. नीरज खरोड़ शामिल हैं। यह किस्में दोहरे उपयोग वाली किस्में हैं, जिनसे बीज और चारा दोनों प्राप्त किया जा सकता है।

जई की HFO 917 किस्म की विशेषताएं

  • जई की HFO 917 किस्म से हरे चारे की औसत पैदावार करीब 192 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
  • इस किस्म से सूखे चारे की पैदावार करीब 28 क्विंटल/हेक्टेयर मिल सकती है।
  • इसके अलावा इस किस्म से करीब 23.8 क्विंटल/हेक्टेयर बीज उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
  • जई की इस किस्म में प्रोटीन प्रतिशत उत्तर-पश्चिम भारत में 14.4 प्रतिशत और उत्तर-पूर्व भारत में 9.38 प्रतिशत तक पाया गया है।

जई की किस्म, HFO 1014 की विशेषताएं

  • जई की HFO 1014 किस्म से हरे चारे की औसत पैदावार 185 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
  • वहीं सूखे चारे की पैदावार 28 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है।
  • इसके अलावा इस किस्म से उत्तर-पश्चिम भारत में करीब 24.3 क्विंटल/हेक्टेयर बीज का उत्पादन मिल सकता है। जबकि उत्तर-पूर्व भारत में करीब 18 क्विंटल/हेक्टेयर तक बीज प्राप्त किया जा सकता है।
  • जई की HFO 1014 किस्म में प्रोटीन प्रतिशत (उत्तर-पश्चिम भारत) में 15.5 प्रतिशत तक पाया गया है।

किन राज्यों में उगाने की सिफारिश

जई की इन दोनों किस्मों को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और असम में उगाने के लिए सिफारिश की गई है। वहीं जई की तीसरी किस्म HFO 915 उन क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है, जहां एक ही फसल से एक से अधिक बार कटाई की आवश्यकता होती है। यह किस्म विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे पर्वतीय राज्यों के लिए उपयुक्त मानी गई है।

इस किस्म को विकसित करने में डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. डी.एस. फोगाट, डॉ. सत्यवान आर्य, डॉ. रवीश पंचटा, डॉ. एस.के. पाहुजा, डॉ. सतपाल, डॉ. नीरज खरोड़, डॉ. दलविंदर पाल सिंह और डॉ. बजरंग लाल शर्मा का योगदान रहा है।

जई की HFO 915 किस्म की विशेषताएं

  • जई की HFO 915 किस्म से हरे चारे की औसत पैदावार करीब 234 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
  • वहीं इस किस्म से सूखे चारे की पैदावार करीब 50 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है।
  • इसके अलावा इस किस्म से बीज उत्पादन करीब 15.7 क्विंटल/हेक्टेयर मिल सकता है।
  • जई की HFO 915 किस्म में प्रोटीन करीब 10 प्रतिशत तक पाया गया है।
  • HFO 915 की खास बात यह है कि यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित किस्म RO-19 से 4 प्रतिशत और UPO-212 से 9 प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है। 

पशुओं के लिए साल भर मिलता रहेगा चारा

जई की ये तीनों नई किस्में देश के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई हैं, ताकि हर मौसम में, हर क्षेत्र में पशुओं को बेहतर क्वालिटी का चारा मिल सके ताकि उनसे अधिक दूध की मात्रा प्राप्त की जा सके। यदि किसान पशु चारे के लिए उपरोक्त किस्मों को अपने क्षेत्र के हिसाब से उगाए तो, इससे न केवल पशुपालन की लागत कम होगी, बल्कि दूध उत्पादन और पशु स्वास्थ्य में भी बड़ा सुधार देखने को मिल सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।

2. प्रोफेसर डी. के. सिंह, पशु चिकित्सा महाविद्यालय, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ।