
जून में बोई जाने वाली मूंगफली की किस्म देती है उत्तम पैदावार Publish Date : 24/06/2025
जून में बोई जाने वाली मूंगफली की किस्म देती है उत्तम पैदावार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं हिमांशु रंजन
मूंगफली की यह बेहतर उपज देने वाली किस्म, इसकी बुवाई का सही तरीका:-
किसान भईयों, यदि आप खेती में अधिक मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं, तो इस बार जून के महीने में मूंगफली की किस्म कादरी-2 (Kadri-2) की बुवाई करें। मूंगफली की यह किस्म न केवल आपको बेहतर उत्पादन देगी बल्कि बाजार में इसके अच्छे रेट भी मिलेंगे। आप विशेषरूप से जून के महीने इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं। यह किस्म इन दिनों किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसका कारण इस किस्म में तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है, वहीं इसकी पैदावार भी अच्छी मिलती है।
इससे भी अच्छी बात यह है कि इसकी बाजार में अच्छी मांग बनी रहती है। आज हम अपनी इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपको मूंगफली की किस्म कादरी-2 (Kadri-2) की खेती के बारे में जानकारी विस्तार पूर्वक प्रदान करने जा रहे हैं।
मूंगफली की कादरी-2 किस्म की विशेषताएं
मूंगफली की किस्म कादरी-2 की सबसे बड़ी विशेषता इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता है। यह किस्म विशेष रूप से पत्ती के धब्बेदार रोगों के प्रति काफी हद तक सुरक्षित मानी जाती है, जिससे किसान को कीटनाशकों पर अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है। इसके साथ ही यह किस्म सूखे जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देने वाली किस्म है। यही कारण है कि यह किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है।
वहीं इस किस्म में तेल की मात्रा लगभग 51 प्रतिशत तक पाई जाती है, जो मूंगफली की अन्य किस्मों की तुलना में कहीं अधिक है। इसलिए इस किस्म की मूंगफली को प्रोसेसिंग और तेल निकालने के लिए प्राथमिकता दी जाती है।
मूंगफली की किस्म कादरी-2 के लिए खेत की तैयारी
मूंगफली की बुवाई से पहले खेत की सही तरीके तैयारी करने की बहुत आवश्यकता होती है। कादरी-2 किस्म के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह भुरभुरा और समतल बना लेना चाहिए, ताकि बीज अंकुरण में कोई समस्या न हो। ऐसे में खेत की 3-4 बार गहरी जुताई करनी चाहिए और हर जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को समतल बना लेना चाहिए।
बुवाई से पहले गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिला देना चाहिए। इससे फसल को शुरुआती चरण में अच्छा पोषण अच्छा मिलता है। मूंगफली की इस किस्म की बुवाई करने से पहले एक-दो सिंचाई करके खेत में नमी बना लेनी चाहिए, क्योंकि मूंगफली की बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना जरूरी है।
मूंगफली की कादरी-2 किस्म की कब और कैसे करें बुवाई
मूंगफली की कादरी-2 किस्म की बुवाई के लिए जून का पहले से तीसरा सप्ताह सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसकी बुवाई के लिए 12-15 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से आवश्यकता होती है। बीज को बोने से पहले फफूंदनाशक (Fungicide) से उपचारित कर लेना चाहिए जिससे कि फसल में कीट एवं रोग कम से कम लगे। अब 10-15 सेमी दूरी पर बीज की बुवाई कर दें। इस बात का ध्यान रखें कि कितार से कतार की दूरी 30-35 सेमी हो। बीजों की बुवाई के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए ताकि बीज का अंकुरण अच्छा हो सके।
मूंगफली की कादरी-2 किस्म में कितनी खाद दें और कब करें सिंचाई
मूंगफली की कादरी-2 किस्म में 20 किग्रा. नाइट्रोजन (N), 40 किलो फास्फोरस (P) और 40 किलो पोटाश (K) प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए। वहीं फसल की पहली सिंचाई 7-10 दिन के बाद करनी चाहिए। इसके बाद हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर इसकी सिंचाई करते रहें। एक बात अवश्य ध्यान में रखें कि मूंगफली में फूल आने और दाना बनने के समय फसल की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। इससे उपज में काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मूंगफली की कादरी-2 किस्म की उपज
सही समय पर बुवाई, उचित देख-रेख और वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करने पर कादरी-2, मूंगफली की फसल 110 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। किसान यदि सिंचाई, पोषण और कीट नियंत्रण आदि का सही से ध्यान रखें तो 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ तक इसकी उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है। यह उपज मात्रा पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक है, जो किसानों की आमदनी को बढ़ा सकती है।
मूंगफली कादरी-2 की खेती का प्रशिक्षण
मूंगफली की इस उन्नत किस्म की लोकप्रियता को देखते हुए देशभर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs), राज्य कृषि विश्वविद्यालय, और कृषि विभाग की ओर से किसानों को विशेष प्रशिक्षण (Training) भी दिया जा रहा है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में किसानों को सिखाया जाता है कि कैसे वैज्ञानिक तरीकों से मूंगफली की कादरी-2 किस्म की खेती की जाए, कौनसी खाद कब दें, रोग नियंत्रण कैसे करें और फसल की कटाई एवं भंडारण कैसे करें। इच्छुक किसान इन संस्थानों से इसकी खेती का प्रशिक्षण ले सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।
2. छात्र, हिमांशु रंजन आरएसएम पीजी कॉलेज धमपुर, बिजनौर।