
सरसों उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक Publish Date : 06/10/2025
सरसों उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक
डॉ. आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
सरसों की खेती के लिए अच्छे भुरभुरे एवं बारीक मिट्टी वाले खेतों की आवश्यकता होती है क्योंकि सरसों के बीज बहुत छोटे होते हैं। अतः इसकी खेती के लिए आवश्यकतानुसार गहरी जुताई करके बीज को बिखेरना चाहिए। बीज को खेत में बिखेरने के बाद पाटा चलाकर भूमि को समतल बना लेना चाहिए। सरसों की फसल को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए एल्ड्रिन 5 प्रतिशत, 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
राई-सरसों खेती करने के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। बादल एवं आर्द्रतायुक्त मौसम माहू के प्रकोप के लिए अनुकूल होता है। इसके साथ-साथ फूल व बीज के बनने की अवस्था में कोहरा या पाला पड़ना भी फसल के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।
भूमि का चुनाव- सरसों की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इन मृदाओं की जल निकास तथा जल धारण करने की क्षमता अच्छी होती है, परन्तु अम्लीय भूमि सरसों की फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
भूमि की तैयारी- सरसों की खेती के लिए अच्छे भुरभुरे एवं बारीक मृदा वाले खेतो की आवश्यकता होती है चूँकि सरसों बीज काफी छोटे होते हैं। इसलिए आवश्यकता के अनुसार गहरी जुताई करके बीज को खेत में बिखेर देना चाहिए। तत्पश्चात् खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल बना लेना चाहिए। दीमक के प्रकोप से सरसों की फसल को बचाने के लिए एल्ड्रिन 5 प्रतिशत, 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना उचित रहता है।
किस्मों का चुनाव- राई की किस्मों में पूसा बोल्ड, वरुण, क्रांति, रोहिणी, जे.एम.-1 आदि प्रमुख हैं। टी-9, भवानी, पी.टी.एम. स. टी.एल.-15 आदि तोरिया की प्रमुख किस्में हैं।
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार- सरसों व तारामीरा का 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की बुवाई करनी चाहिए। बीज की बुवाई के पूर्व उसे थायरम 3 ग्राम था बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बोने की विधि- छिटकवां विधि की तुलना में कतारों में सरसों की बुवाई करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। इसलिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. एवं बीज की गहराई 2-3 सेमी. रखना चाहिए। सरसों का बीज बहुत छोटा होता है। इसलिए अधिक गहराई पर बुवाई करने से फसल के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
सिंचाई- सरसों में प्रथम सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई 55-60 दिन की अवस्था पर करने से उपज में अतिरिक्त लाभ मिलता है। तारामीरा की फसल बारानी अवस्था में भी अच्छी उपज देती है, परंतु बोनी के 30-35 दिन पर एक हल्की सिंचाई करने पर उपज में वृद्धि होती है।
पोषक तत्व प्रबंधन- राई, सरसों व तोरिया के लिए वर्षाधीन स्थिति में 40:20:10 एवं सिंचित फसल की स्थिति में 80:40:20 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर की दर से क्रमशः नत्रजन, स्फुर व पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके साथ-साथ 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट उपरोक्त उर्वरकों को साथ खेत की तैयारी के समय उपयोग करें। मृदा उर्वरता के बनाये रखने एवं उसे बढ़ाने के लिए किसी कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद आदि का 4-5 टन प्रति हेक्टेयर या केचुआं खाद 2-3 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में उपयोग करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण- फसल की प्रारंभिक अवस्था लगभग 25-30 दिन की अवधि तक फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए निंदाई करें। इसके पश्चात् फसल स्वयं तीव बढ़वार करके खरपतवारों से अपनी रक्षा कर लेती है। वासालिन 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व छिड़काव करके भी खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं।
कीट नियंत्रण- माहू. आरा मक्खी, पेंटेड बग आदि सरसों के प्रमुख कीट है। सरसों की फसल में सबसे अधिक हानि माहू नामक कीट के माध्यम से होती है। इन कीटों से फसल के बचाव के लिए डाइमिथोएट (रोगर 30 ई.सी.), मिथाईल डिमेटान (मेटा सिस्टाक्स 25 ई.सी.) का 500 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें या क्विनालफॉस का 1.5-2.0 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
रोग नियंत्रण- झुलसा रोग, सफेद रतुआ किट्ट, पाउडरी मिल्ड्यू आदि सरसों के प्रमुख रोग हैं। झुलसा रोग एवं सफेद रतुआ किट्ट रोगों से फसल के बचाव के लिए डायथेन एम-45, 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। चूर्णिल आसिता के नियंत्रण हेतु सल्फेक्स 0.3 प्रतिशत या बाविस्टीन 0.15 प्रतिशत का छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई- फसल के अधिक पकने पर फसल झड़ जाती है। जब दानों में 40 प्रतिशत नमी हो तब कटाई करना उपयुक्त होता है। खलिहान में फसल को अच्छी तरह सुखाकर गहाई करें एवं बीज सुखाकर ही भंडारित करना चाहिए।
भंडारण- सरसों के बीज का भंडारण 7-8 प्रतिशत नमी पर करना चाहिए। अधिक आर्द्रता की स्थिति में रोग व कीटों का प्रकोप अधिक होता है। बीज का भंडारण आईता रोधी व हवा रोधी भंडारण गृहों में ही करना उचित रहता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।