मेथी मसाला और औषधीय फसल      Publish Date : 23/07/2025

                  मेथी मसाला और औषधीय फसल

                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

दुनिया में मसाला उत्पादन और मसाला निर्यात के हिसाब से भारत का प्रथम स्थान है, इसलिए भारत को मसालों का घर भी कहा जाता है। मसाले हमारे खाद्य पदार्थों को स्वादिष्टता तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही हम इस से विदेशी मुद्रा का अर्जन भी करते हैं। मसाले की ऐसी एक प्रमुख फसल मेथी है। इस की हरी पत्तियों में प्रोटीन, विटामिन सी और भरपूर मात्रा में खनिज तत्त्व पाए जाते हैं। मेथी के बीज मसाले और दवा के रूप में काफी उपयोगी है। भारत में मेथी की खेती व्यावसायिक स्तर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब आदि राज्यों में की जाती है। भारत मेथी का मुख्य उत्पादक और निर्यातक देश है। इस का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है।

भूमि और जलवायु

मेथी को अच्छे जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश वाली सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, परंतु दोमट मिट्टी इसके उत्पादन के लिए उत्तम रहती है। यह ठंडे मौसम की फसल है। पाले व लवणीयता को भी यह कुछ हद तक सहन कर सकती है। मेथी की प्रारंभिक वृद्धि के लिए मध्यम आई जलवायु और कम तापमान उपयुक्त है, परंतु पकने के समय गरम व शुष्क मौसम उपज के लिए सहायक होता है। इस प्रकार यदि पुष्प व फल बनते समय अगर आकाश बादलों से घिरा हो, तो फसल पर कीड़ों व बीमारियों के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।

मेथी की उन्नत किस्में

                                                 

आरएमटी-305: मेथी की यह एक बहुफलीय किस्म है। इस किस्म का औसत बीज भार और कटाई सूचकांक अधिक है। इसकी फलियां लंबी और अधिक दानों वाली होती हैं, जिसके दाने सुडौल, चमकीले पीले होते हैं। इस किस्म में छाछ्या रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधकता होती है। इस किस्म के पकने की अवधि 120-130 दिन है। इस किस्म की औसत उपज 18 बिंवटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।

आरएमटी-1: समूचे राजस्थान के लिए यह उपयुक्त किस्म है। इस किस्म के पौधे अर्ध सीधे एवं मुख्य तना नीचे की ओर गुलाबीपन लिए होता है। मेथी की इस किस्म पर बीमारियों एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। इसके पकने की अवधि 140-150 दिन है और इसकी औसत उपज 14-15 क्विटल प्रति हेक्टेयर है।

हरी पत्तियों के लिए

पूसा कसूरीः यह छोटे दाने वाली मेथी होती है। इस किस्म की खेती आमतौर पर हरी पत्तियों के लिए की जाती है। कुल 5-7 हरी पत्तियों की कटाई की जा सकती है। इसकी औसत उपज 5-7 क्विटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

खेत की तैयारीः भारी मिट्टी में खेत की 3-4 और हल्की मिट्टी में 2-3 जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए और खरपतवार को निकाल देना चाहिए।

खाद एवं उर्वरकः प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय डालें। इसके अलावा 40 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पहले खेत में ऊपर से देना चाहिए।

बीज की बुआई एवं मात्राः मेथी की बुआई अक्तूबर माह के अंतिम सप्ताह से नवंबर माह के पहले सप्ताह तक की जाती है। बुआई में देरी करने से फसल के पकने की अवस्था के समय तापमान अधिक हो जाता है। इसके चलते फसल शीघ्र पक जाती है और उपज में कमी आती है। पछेती फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है। इसके लिए 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है। बीजों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में 5 सैंटीमीटर की गहराई पर बोएं। बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर बोने से फसल की उपज अच्छी मिलती है।

सिंचाई एवं निराई-गुड़ाईः मेथी की खेती रबी में सिंचित फसल के रूप में की जाती है। सिंचाइयों की संख्या मिट्टी की संरचना और वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है। वैसे, रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी उपज के लिए तकरीबन 8 सिचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। परंतु अच्छे जल धारण क्षमता वाली भूमि में 4-5 सिचाइयां ही पर्याप्त होती हैं। फली व बीजों के विकास के समय खेत में पानी की कमी नहीं रहनी चाहिए। बीज बोने के बाद हलकी सिंचाई करें।

इसके बाद आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करतक रहें। बुआई के 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई कर पौधों की छंटाई कर देनी चाहिए व कतारों में बोई फसल में अनावश्यक पौधों को हटा कर पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर बनाए रखें। अगर जरूरी हो, तो 50 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें। पौधों की वृद्धि की प्राथमिक अवस्था में निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी में हवा का संचार पूरी तरह से होता है और खरपतवार के नियंत्रण में भी मदद मिलती है।

खरपतवार नियंत्रण

मेथी को उगने के 25 व 50 दिन बाद 2 निराई-गुड़ाई कर पूरी तरह से खरपतवार से मुक्त रखा जा सकता है। इस के अलावा मेथी की बुआई के पहले 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फ्लूक्लोरेलिन को 600 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें, उस के बाद मेथी की बुआई करें या फिर पेंडीमिथेलीन 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 600 लिटर पानी में घोल कर मेथी की बुआई के बाद, मगर फूल आने से पहले कर मेथी की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखा जा सकता है।

यह ध्यान रखें कि फ्लूक्लोरेलिन के छिड़काव के बाद खेत को खुला न छोड़ें, अन्यथा इस का वाष्पीकरण हो जाता है और पेंडीमिथेलीन के छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी का उपलब्ध होना आवश्यक है।

प्रमुख कीट एवं उनका प्रबंधन

मेथी की फसल पर नाशीकीटों का प्रकोप कम होता है, परंतु कभी-कभी माहू, तेला, पत्ती भक्षक, सफेद मक्खी, चिप्स, माइट्स, फली छेदक एवं दीमक आदि का आक्रमण होता है. मेथी में सब से अधिक नुकसान माहू कीट से होता है।

माहू का प्रकोप मौसम में अधिक नमी व आकाश में बादल के रहने के दौरान अधिक होता है। यह कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के प्रकोप से दाने कम व निम्न गुणवत्ता वाले बनते हैं। इस की रोकथाम के लिए जैविक विधियों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना उचित है। आक्रमण बढ़ता दिखने पर नीम आधारित रसायनों निबोली अर्क 5 फीसदी या तेल आधारित 0.03 फीसदी का 1 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। रासायनिक कीटनाशी अवशेषों से उपज को बचाएं।

प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

छाछ्याः यह रोग ‘इरीसाईफी पोलीगोनी’ नामक कवक से होता है। रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता है जो बाद में पूरे पौधे पर फैल जाता है। इससे उपज का काफी नुकसान होता है।

रोग प्रबंधनः गंधक चूर्ण 20-25 किलोग्राम हेक्टेयर भुरकाव करें या केराधेन एलसी 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करें। जरूरत के अनुसार 10 से 15 दिन बाद पुनः दोहराएं, रोग रोधी मेथी हिसार माधवी के बीज की बुआई करें।

तुलासिता (डाउनी मिल्ड्यू): यह रोग ‘पेरेनोस्पोरा स्पी.’ नामक कवक से होता है। इस रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे की सतह पर फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। रोग की अधिक अवस्था में रोग से ग्रसित पत्तियां झड़ जाती हैं।

रोग प्रबंधनः फसल की अधिक सिंचाई न करें। इस रोग के लगने की प्रारंभिक अवस्था में फसल पर मैंकोजेब 0.2 फीसदी या रिडोमिल 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करें और जरूरत के अनुसार 15 दिन बाद पुनः दोहराएं।

जड़-गलनः मेथी की फसल में जड़-गलन रोग का प्रकोप भी बहुत होता है, जो बीजोपचार कर और फसल चक्र अपना कर, ट्राइकोडर्मा विरिडी मित्र फफूंद 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद में मिला कर बुआई करने से पहले भूमि में देकर इसके प्रकोप को कम किया जा सकता है।

कटाई एवं उपज

                                                  

जब पौधों की पत्तियां झड़ने लगें व पौधे पीले रंग के हो जाएं, तो पौधों को उखाड़ कर या फिर दरांती से काट कर खेत में छोटी-छोटी ढेरियों में रखें। सूखने के बाद कूट कर या थ्रेशर से दाने अलग कर लें। साफ दानों को पूरी तरह सुखाने के बाद बोरियों मे भरें। समुचित तरीके से खेती की क्रियाओं को अपनाने से 15 से 20 क्विटल बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार प्राप्त हो सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।