
जायद में बाजरा की खेती Publish Date : 14/06/2025
जायद में बाजरा की खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
खरीफ के अलावा जायद के मौसम में भी बाजरे की खेती सफलतापूर्वक की जाने लगी है, क्योंकि जायद में बाजरा के लिए अनुकूल वातावरण होता है, जो इसको दाने के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। वहीं इसके साथ ही चारे के लिए भी इसकी खेती बहुत की जाती रही है। सिंचाई की जल की समुचित व्यवस्था होने पर आलू, सरसों, चना और मटर आदि की फसलों के बाद बाजरा की खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
बजरे की खेती के लिए उचित मृदा
बलुई दोमट या दोमट भूमि बाजरा के लिए अच्छी रहती है। भली भॉति समतल व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
भूमि की तैयारी कैसे करें
खेत की पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेमी. गहरी एक जुताई करें तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन जुताइयॉ करके पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए।
बाजरे की उन्नतशील प्रजातियाँ
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प्रजाति |
पकने की अवधि (दिन) |
ऊंचाई (सेमी.) |
दाने की उपज (कु./हे.) |
अ. |
संकुल प्रजातियाँ |
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आई.सी.एम.वी.-221 |
75-80 |
200-225 |
20-22 |
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आई.सी.टी.पी.-8203 |
80-85 |
180-190 |
18-20 |
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राज-171 |
80-85 |
190-210 |
20-25 |
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पूसा कम्पोजिट-383 |
80-85 |
190-210 |
20-25 |
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आई.सी.एम.वी.-221 |
75-80 |
200-225 |
20-22 |
ब. |
संकर प्रजातियाँ |
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86 एम-52 |
78-82 |
170-180 |
28-30 |
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जी.एच.बी.-526 |
80-85 |
170-180 |
28-30 |
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पी.बी.-180 |
80-85 |
180-190 |
28-30 |
|
जी.एच.बी.-558 |
75-80 |
170-180 |
28-30 |
बाजरे की बुवाई का उचित समय
बाजरा की बुवाई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। बाजरा एक परागित फसल है तथा इसके परागकण 46 डिग्री.ब् तापमान पर भी जीवित रह सकते है व बीज बनाते हैं।
बीज दर
दाने के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हे. बीज पर्याप्त होता है बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. की दर से शोधित कर लेना चाहिए।
बुवाई की विधि
बाजरे की बुवाई लाईन में करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. रखनी चाहिए।
बाजरे में उर्वरक प्रबन्धन
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण से प्राप्त संस्तुतियों के आधार पर ही करना चाहिए। मृदा परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 80 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस तथा 40 किग्रा. पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहिए। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 20-25 दिन बाद खेत में पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करनी चाहिए। यदि पूर्व में बोयी गयी फसल में गोबर की खाद का प्रयोग न किया गया हो तो 5 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर देने से भूमि का स्वास्थ्य भी सही रहता है तथा उपज भी अधिक प्राप्त होती है।
बीज को नत्रजन जैव उर्वरक-एजोस्प्रीलिनम तथा स्फूर जैव उर्वरक-फास्फेटिका द्वारा उपचारित कर बोने से भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा उपज भी अधिक मिलती है। आलू के खेत में बाजरा बोने से उर्वरकों की मात्रा को 25 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
विरलीकरण (थिनिंग) गैप फिलिंग
बुवाई के 15-20 दिन बाद सांय के समय खेत में पर्याप्त नमी होने पर घने पौधों वाले स्थान के पौधों को उखाड़ कर कम पौधे वाले स्थान पर रोपित कर देना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. कर लेना चाहिए तथा रोपित पौधे किये गये पौधों में तुरंत ही पानी लगा देना चाहिए।
सिंचाई
जायद में बाजरा की फसल 4-5 सिंचाइयॉ पर्याप्त होती है। 15-20 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिए। कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में पर्याप्त नमी आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण/निराई-गुड़ाई
खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद जमाव से पूर्व एट्राजीन 0.5 किग्रा./हे. की दर से 700-800 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव समान रूप से करना चाहिए। खरपतवार दिखाई देने पर निकाई के बाद गहरी गुड़ाई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण के साथ-साथ नमी का संरक्षण भी हो जाता है।
फसल सुरक्षा
बाजरा एक तेजी से बढ़ने वाली फसल है तथा जायद में बोने पर कीट तथा रोग का प्रभाव भी कम होता है। रोग से रोकथाम के निम्न उपाय है।
रोग अरगट
रोग के लक्षण
यह फफॅूदी से उत्पन्न होने वाला रोग है। इसके लक्षण बालों पर दिखाई देते है। इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग से सींक के आकार की गांठे बन जाती है। संक्रमित फूलों में फफॅूदी विकसित हो जाती है। रोग ग्रसित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होते हैं।
रोकथाम
1. रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाना चाहिए।
2. शोधित बीज का प्रयोग करें यदि बीज उपचारित नहीं है तो 20 प्रतिशत नमक के घोल में बीज को डालने पर प्रभावित बीज/फफॅूदी तैर कर ऊपर आ जाएगी। जिन्हें हटाकर नीचे का शुद्ध बीज लेकर साफ पानी से 4-5 बार धोकर एवं सुखाकर प्रयोग करें।
रोग कण्डुआ
रोग के लक्षण
यह फफॅूदी जनित रोग है। बालियों में दाना बनते समय रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। रोग ग्रसित दाने बड़े, गोल या अण्डाकार हरे रंग के दिखाई देते है बाद में दानों के अन्दर काला चूर्ण भरा होता है।
रोकथाम
1. बीज शोधित करके बोना चाहिए।
2. एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए।
3. रोग ग्रसति बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
4. रोग की संभावना दिखते ही फफॅूदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बाक्सिन की 1.0 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग
रोग के लक्षण
रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियॉ पीली पड़ जाती है तथा निचली सतह पर फफॅूदी की हल्के भूरे रंग की वृद्धि दिखाई देती है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा बालियों के स्थान पर टेड़ी मेड़ी गुच्छेनुमा हरी पत्तियॅा सी बन जाती है।
रोकथाम
1. रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना उचित है।
2. बीज को शोधित करके बुवाई करनी चाहिए।
3. सर्वाेगी फफॅूदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बाक्सिन 1.00 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति.हे. की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।