
नींबू की वैज्ञानिक खेती Publish Date : 07/06/2025
नींबू की वैज्ञानिक खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
भारत के लगभग प्रत्येक घर में उपयोग किए जाने वाला हरा-पीला नीबू, विटामिन A, B और C आदि से भरपूर होता है। यदि इसमें विटामिनों की मात्रा की बात करें तो नींबू में विटामिन A यदि एक भाग उपलब्ध होता है तो विटामिन B दो भाग और विटामिन C 3 भाग होता है। इसके अतिरिक्त नींबू में पोटेशियम, लौह, सोडियम, मैग्नीशियम, ताँबा, फॉस्फोरस और क्लोरीन के जैसे तत्व तो मौजूद होते ही हैं, साथ ही प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट आदि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। नींबू में विटामिन C की मात्रा के भरपूर होने के कारण हमारे शरीर की इम्युन्टिी को बढ़ाने के साथ ही एंटीऑक्सीडेंट भी प्रदान करता और साथ ही यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है।
नींबू के लिए उपयुक्त मृदाः नींबू की खेती करने के लिए मृदा का पी.एच. मान 6.5 से 7.0 के बीच उचित माना जाता है। हालांकि, नींबू की पैदावार के लिए 4 से 9 पीएच मान की श्रेणी भी अच्छी मानी जाती है जिसमें इसकी पैदावार काफी अच्छी होती है।
नींबू की उन्नत किस्में:- प्रामलिनी, विक्रम, चक्रधर, PKM-1, चयन-49 और सीडलेस लाइ्रम आदि नींबू की उन्नत किस्में हैं, जबकि प्रामलिनी, विक्रम और PKM-1 आईसीएआर के द्वारा विकसित की गई खट्टे नींबू की किस्में हैं।
भूमि का चयनः- नींबू की खेती के लिए भूमि को अच्छी तरह से जोतकर समतल बना लेना चाहिए।
नींबू की खेती के मानकः-
सामान्य अंतरः- 6 x 6 मीटर।
पौधों की संख्याः- 275 पौधें प्रति हैक्टेयर।
पौध रोपण का समयः- जून के महीने से लेकर अगस्त के महीने तक।
गड्ढ़ों का आकारः- 60 x 60 x 60 से.मी.। 10 कि.ग्रा. गोबर की खाद और 500 ग्राम सुपर-फॉस्फेट प्रति गड्ढे की दर से प्रयोग करें।
सिंचाईः- नींबू में पेड़ों की सिंचाई गर्मी एवं सर्दी के दौरान प्रथम वर्ष में नींबू के पौधों के लिए जीवन रक्षक सिद्व होती है।
खाद एवं उर्वरकः- प्रत्येक वर्ष फरवरी, जून और सितम्बर के महीने में खाद/उर्वरक तीन एक समान डोज नींबू के पौधें में डालनी चाहिए।
कटाई और छंटाईः- नींबू के सुद्ढ़ तने के विकास के लिए प्रारम्भिक चरण में विकसित हुए प्रथम 40-50 से.मी. तक विकसित हुई नींबू की समस्त नई टहनियों को हटा देना चाहिए, ध्यान रहे कि इस दौरान नींबू के पेड़ का केन्द्र खुला ही रहना चाहिए। इसी प्रकार प्रयास करें कि नींबू की शाखाएं सभी पक्षों में अच्छी तरह से वितरित हो। क्रॉस टहनियों एवं पानी की सोरियों को भी हटा देना चाहिए। इसके साथ नींबू की रोग-ग्रस्त एवं सूखी टहनियों को भी समय-समय पर हटाते रहना आवश्यक है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।