
सतावरी (शतावरी) की खेती वैज्ञानिक विधि से Publish Date : 17/03/2025
सतावरी (शतावरी) की खेती वैज्ञानिक विधि से
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सतावरी (शतावरी) की खेती का उचित समय
सतावरी को हिंदी में शतावरी, संस्कृत में शतावरी और अंग्रेजी और शतावरी लैटिन नाम एस्पैरागस रेसमोसस विल्डय है। यह एक काँटेदार झाड़ी है जो जंगली होने के साथ-साथ देश के गर्म क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। इसके पौधे की मांसल कंदीय जड़ों का उपयोग पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों को बनाने में किया जाता है।
सतावरी की खेती करने में सही समय का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि सही मौसम में इसकी रोपाई करने से किसानों को अच्छी उपज मिलती है और इससे किसानों की आय बढ़ती है।
1. बुवाई और नर्सरी तैयार करने का उचित समय
फरवरी-मार्च अथवा जुलाई-अगस्त के महीनों में नर्सरी में बीज की बुवाई करना सबसे अच्छा माना जाता है।
शतावरी के बीजों को अंकुरित होने में 30-40 दिन का समय लग जाता हैं।
2. मुख्य खेत में रोपाई करने का सही समय
मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) में शतावरी की रोपाई करना सबसे उत्तम रहता है।
वैकल्पिक रूप से, सर्दियों के अंत अर्थात फरवरी-मार्च महीने में भी शतावरी की रोपाई की जा सकती है।
3. फसल की कटाई का उचित समय
फसल को परिपक्व होने के लिए इसे 18-24 महीने तक बढ़ने देना चाहिए जिससे कि शतावरी की जड़ें पूरी तरह विकसित हो सकें।
आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर के महीनों में शतावरी की खुदाई की जाती है।
हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में सतावरी की खेती के लिए जुलाई-अगस्त (मानसून के समय) और फरवरी-मार्च (बसंत ऋतु) को सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में सतावरी (शतावरी) की खेती कैसे करें-
सतावरी (Asparagus racemosus) एक अति महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में शतावरी की खेती किसानों के लिए खेती का एक लाभदायक विकल्प बन सकती है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी की विशेषताएं सतावरी की खेती के लिए सवर्था अनुकूल हैं।
आवश्यकता जलवायु और मृदा
जलवायुः सतावरी गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ती है, जो राजस्थान, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की जलवायु से पूरी तरह से मेल खाती है। सतावरी की खेती के लिए 20°C से 35°C तापमान इसकी उत्तम वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है।
मिट्टीः रेतीली दोमट मिट्टी (sandy loam) सतावरी की खेती के लिए आदर्श मृदा मानी जाती है, जो उपरोक्त राज्यों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अच्छी जल निकासी वाली भूमि इसकी जड़ों के समुचित विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहती है।
सतावरी की खेती की वैज्ञानिक विधिः
1. बीज की तैयारी करनाः सतावरी के बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने से उनकी अंकुरण क्षमता काफी हद तक बढ़ाई जा सकती है।
2. नर्सरी की स्थापनाः सतावरी के बीजों को नर्सरी में बोया जाता है, जहां से लगभग 40 से 45 दिनों के बाद, जब इसके पौधों की ऊँचाई 4-5 इंच हो जाती हैं, तो इन्हें मुख्य खेत में रोपा जा सकता है।
3. रोपाई करने का तरीकाः नर्सरी से लाए गए पौधों को 60-60 सेंटीमीटर की दूरी पर 4-5 इंच गहरे गड्ढों में लगाया जाता है। यह दूरी सतावरी के पौधों के उचित विकास के लिए आवश्यक होती है।
सतावरी से प्राप्त आर्थिक लाभः
सतावरी की खेती के माध्यम से किसानों को अच्छी आय प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के लिए, सतावरी की खेती एक एकड़ में करने से लगभग 6 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।
सतावरी बाजार में मांग कैसी हैः
आयुर्वेदिक दवाओं में सतावरी की बढ़ती मांग के कारण, इसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय का रूप ग्रहण कर सकती है। इसकी जड़ों का उपयोग विभिन्न औषधियों के निर्माण में किया जाता है, जिससे इसकी बाजार में सदैव ही स्थिर मांग बनी रहती है।
शतावरी के लाभ और उपयोग
शतावरी एक पोषक टॉनिक के रूप में अपनी क्रिया के लिए एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है। स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग विशेष रूप से अनुशंसित है। शतावरी द्वारा स्तनपान में उल्लेखनीय वृद्धि आज वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है। तकनीकी रूप से इसे गैलेक्टोगॉग कहा जाता है, इसका प्रभाव प्रोलैक्टेशन हार्मान स्तर पर इसकी क्रिया के कारण होता है। इसके अलावा, भारतीय आयुर्वेद द्वारा शारीरिक सहनशक्ति और प्रतिरक्षा में सुधार के लिए इसकी सिफारिश की जाती है। प्रतिरक्षा कार्यों को बढ़ाने में शतावरी की भूमिका वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है।
शतावरी या शतावरी के अनेक लाभ और उपयोग इस प्रकार हैं:
कोलेस्ट्रॉल कम करता है
शतावरी जड़ के पाउडर में सैपोनिन, फ्लेवोनोइड्स और एस्कॉर्बिक एसिड जैसे विभिन्न यौगिक होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल के उत्सर्जन को बढ़ाते हैं। शतावरी रेसमोसस खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल के उत्पादन को बढ़ावा देता है जो हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मदद करता है।
मूत्र वर्धक
शतावरी प्रकृति में मूत्रवर्धक होता है, जिसका अर्थ है कि शतावरी का नियमित सेवन करने से पेशाब की मात्रा और आवृत्ति में सुधार करने में सहायता प्रदान कर सकता है।
दस्त का उपचार
शतावरी दस्त के उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली एक सदियों पुरानी औषधि है।
पाचन में सहायक
शतावरी के फायदों में से एक पाचन को बेहतर बनाना भी है। शतावरी पाचन एंजाइम लाइपेस और एमाइलेज की गतिविधि को बढ़ाकर पाचन क्रिया में सुधार करती है। लाइपेस वसा के पाचन में सहायता करता है जबकि एमाइलेज कार्बाेहाइड्रेट के पाचन में मदद करता है।
गुर्दे की पथरी का उपचार
शतावरी के मूत्रवर्धक गुणों के चलते, यह गुर्दे की पथरी से राहत दिलाने में उपयोगी सिद्व हो सकता है। साथ ही, शतावरी रेसमोसस एंटी-यूरोलिथियासिस है जो पथरी को घुलाने की प्रक्रिया को तेज़ करता है और नई पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि
शतावरी की जड़ों में सैपोजेनिन होता है जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिए एक शक्तिशाली एजेंट है। शतावरी रेसमोसस रोग पैदा करने वाले एजेंटों के विरूद्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने में मदद करता है। सैपोजेनिन संक्रमण पैदा करने वाली कोशिकाओं पर काबू पाकर संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं को भी उत्तेजित करता है।
महिला प्रजनन प्रणाली
शतावरी के मुख्य घटक सैपोनिन हैं जो एस्ट्रोजन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह मॉड्यूलेशन मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करने, पीएमएस के लक्षणों को प्रबंधित करने, मासिक धर्म की ऐंठन को कम करने और रक्त की हानि की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।